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कौन हैं 'ठुमरी की रानी' गिरिजा देवी? जानें उनके संगीत सफर की अनकही बातें

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गिरिजा देवी: भारतीय शास्त्रीय संगीत की अनमोल धरोहर

मुंबई, 24 अक्टूबर। भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया में 'ठुमरी की रानी' के नाम से मशहूर गिरिजा देवी का संबंध बनारस घराने से है। उन्होंने अपने गायन के माध्यम से न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी लोगों के दिलों को छू लिया। उनके गाने सुनकर कई लोग भावुक हो जाते थे। गिरिजा देवी ने ठुमरी, दादरा और पूर्वी अंग जैसी उपशास्त्रीय शैलियों को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।


गिरिजा देवी का जन्म 8 मई 1929 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ। बचपन से ही उन्हें ठुमरी और शास्त्रीय संगीत में गहरी रुचि थी, जिसके चलते उन्होंने अपने घर को छोड़कर दो साल तक अपने गुरुओं के पास रहकर संगीत की शिक्षा ली। इस अनुभव ने उन्हें शास्त्रीय और उपशास्त्रीय दोनों शैलियों में महारत दिलाई।


गिरिजा देवी की शादी छोटी उम्र में हो गई थी, लेकिन शादी के पांच साल बाद उन्होंने रेडियो पर गाना शुरू किया। उनकी असली पहचान तब बनी जब उन्होंने बिहार के आरा में एक कॉन्फ्रेंस में पंडित ओंकारनाथ ठाकुर की जगह प्रस्तुति दी।


कॉन्फ्रेंस में पंडित ओंकारनाथ ठाकुर की गाड़ी खराब हो गई थी, जिससे वह समय पर नहीं पहुंच सके। आयोजकों ने गिरिजा देवी को मौका दिया, और उन्होंने मंच पर अपनी गायकी से सभी को चौंका दिया। इस घटना के बाद उनकी जिंदगी में एक नया मोड़ आया।


गिरिजा देवी ने रेडियो कार्यक्रमों, स्टेज शो और कॉन्फ्रेंस में गायन करना शुरू किया, और उनके गायन की सराहना हर जगह होने लगी। 1952 में उन्हें दिल्ली बुलाया गया, लेकिन इससे पहले उन्होंने बनारस कॉन्फ्रेंस में अपनी प्रस्तुति दी।


बनारस कॉन्फ्रेंस में गिरिजा देवी के सामने सितार वादक रविशंकर, सरोद वादक अली अकबर खान, और सितार वादक विलायत खान जैसे दिग्गज मौजूद थे। रविशंकर को उनकी ठुमरी इतनी पसंद आई कि उन्होंने उन्हें दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में बुलाया, जहां राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और कई मंत्रियों के सामने गिरिजा देवी ने ठुमरी गाई। उनकी आवाज ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।


गिरिजा देवी के योगदान के लिए उन्हें कई सम्मान मिले, जिनमें 1972 में 'पद्मश्री', 1989 में 'पद्म भूषण', और 2016 में 'पद्म विभूषण' शामिल हैं। इसके अलावा, उन्हें 'संगीत नाटक अकादमी' पुरस्कार भी मिला।


अपने जीवन के अंतिम वर्षों में गिरिजा देवी कोलकाता में रहीं, जहां वे संगीत रिसर्च अकादमी में समय बिताती थीं और नए कलाकारों को सिखाती थीं। 24 अक्टूबर 2017 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया।


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